Vaidik Yug की शुरुआत
- सिंधुखीन संस्कृति इ.स पूर्वे १७५० के आसपास पतन के तरफ जा रही थी।इस संस्कृति के पतन का कारण अकाल या समुद्रमे आया पुर था।
- इ.स पूर्वे १५०० के आसपास भारत मे आर्य आये।और इस आर्य के समय अंतराल को वैदिक सभ्यता और आर्य सभ्यता कहा जाता है।
- वैदिक सभ्यता का समय इ.स पूर्वे १५०० से इ.स पूर्वे ६०० तक माना जाता है।
वैदिक सभ्यता को समय के अनुसार दो पार्ट में डिवाइड किया गया है।
१)ऋग्वेदिक युग (इ.स पूर्वे १५०० से इ.स पूर्वे १०००)
२)उत्तर वैदिक युग (इ.स पूर्वे १००० से इ.स पूर्वे ६००)
इस वैदिक युग में वेद,ब्रामणग्रन्थ,आरण्यकों,उपनिषदों,वेदांग,उपवेद,स्मृतिग्रन्थ,पुराण, और महाकाव्यों की रचना हुए।
आर्यो का इतिहास
- आर्यो इ.स पूर्वे ४००० की आसपास दक्षिण एशिया के यूरोपियन और स्टेपीज के मैदान में बसाते थे। पशुपालन के साथ जुडी इस प्रजा घास-चारे की तंगी के कारण अपना स्थान बदलना पड़ा और वो मध्यएशिया में छोटी छोटी टोली में आये ।
- इ.स पूर्वे १५०० के आसपास आर्योने हिन्दुकुश पर्वतमाला के खैबर घाट से उन्होंने भारत मे प्रवेश किया।
- लोकमान्य तिलक से अनुसार आर्य “उत्तरध्रुव” ,स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनुसार “तिब्बत” और मेक्समुलर के अनुसार आर्य का मूल वतन “मध्यप्रदेश” था।
- आर्य पशुपालन के साथ जुडी प्रजा थी।वह दूध,मांस,और चार्म के लिए गाय,भेष,घेटा,और घोड़े को रखते।इसमें गाय और धोड़ा महत्व के पशु मानते थे।
- घनवान व्यक्ति को उस समय में “गोमत” कहा जाता।पुत्री को “दोहिता” कहा जाता।युद्ध के लिए “गवेषणा” शब्द का प्रयोग करते थे।ज्यादातर युद्ध पशु के लिए होते थे।
- गाय को सबकी इच्छा पूर्ण करने वाली “कामदा” कहा जाता था।
वेद
“वेद ऐ “विद” शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है “जानना”।मानवजाति का सवर्श्रेष्ठ ग्रन्थ यानि “वेद”। वेदों की रचना “वेदव्यास” द्रारा किया गया है।जिसका मूल नाम “कृष्णा द्वैपायन” है ।
वेद के प्रकार
१)ऋग्वेद
- ऋग्वेद की रचना पूर्व वैदिक युग मे हुए है।
- ऋग का अर्थ होता है “मंत्र“
- सब वेदो में से प्राचीन वेद यानि “ऋग्वेद” जिसकी रचना इ.स पूर्वे १२०० की आसपास हुए थी ।
- ऋग्वेद मे १० मंडल में बटा हुआ है ।१० मंडल में १०२८ सुक्ताये है और १०२८ सूक्तो में १०,५८० यानि करीब ११ हजार मंत्र है।
- तीसरे मण्डल की रचना विश्वामित्र ने की है जिसमे गायत्री मंत्र का वर्णन किया गया है।गायत्री मंत्र सूर्यदेव पर समर्पित है।
- सातमे मंडल की रचना वशिष्टमुनि ने किया है जिसमे “दासराज्ञ” युद्ध का वर्णन किया है।
- दसमे मंडल में वर्णव्यवस्था के उदय का वर्णन किया गया है।
२)सामवेद
- सामवेद में साम का अर्थ होता है गीत-संगीत तो इस वेदमे गीत-संगीत के बारेमे लिखा है ।
३)यजुर्वेद
- यजुर्वेदमे यजु का अर्थ होता है “यज्ञ“।यजुर्वेदमे यज्ञ सबंधी नियमो और विधि का वर्णन किया गया है।
- यजुर्वेद गद्य और पद्य दो में लिखा हुआ एक मात्र वेद है ।
४)अथर्ववेद
- अथर्ववेदमे दवा,वशीकरण,तंत्र-मंत्र,जादूटोना सभी का वर्णन किया गया है।
ब्रामणग्रंथो
वेद जहा गद्य में लिखे हुए थे वही ब्रामणग्रन्थ पद्यमे लिखे हुए है।और वेदो को समझने के लिए ब्रामणग्रन्थ की रचना हुए है।
- ऋग्वेद का ब्रामणग्रन्थ “ऐतरेय“
- सामवेद का ब्रामणग्रन्थ “ताण्डव“
- यजुर्वेद का ब्रामणग्रन्थ “सतपथ“
- अथर्वेद का ब्रामणग्रन्थ “गोपथ“
आरण्यकों
- “आरण्यकों का मतलब “जंगल का पुस्तक”
- ब्रामणग्रन्थ के बाद आरण्यकों की रचना हुए।आर्यो ने अपने जीवन का अंतिम भाग जंगल में हुए चिंतन,मनन के फल स्वरुप रचे हुए ग्रन्थ को आरण्यकों कहते है।
- आरण्यकों कर्म प्रधान ग्रन्थ है।जिसमे ज्ञान पर जोर दिया गया है।
उपनिषद
- उपनिषदमे उप का मतलब होता है “नजदीक” और निषद का मतलब होता है “बेठना”।यानि उपनिषदका मतलब होता है “पास में बेठना”।
- उपनिषद की सख्या १०८ है ।
अगत्य के उपनिषद
- छांदोग्य उपनिषद = सबसे पुराण उपनिषद
- बृहदारण्य उपनिषद =सबसे बड़ा उपनिषद
- मुण्डकोपनिषद =जिसमे से भारत का आदर्श वाक्य “सत्यमेव जयते” लिया गया है।
उपनिषद मे लिखे हुए दार्शनिक षडदर्शन
- संख्यादर्शन = महर्षि कपिल
- योगदर्शन =महर्षि पतंजलि
- न्यायदर्शन =महर्षि गैतम
- वैशेषिकदर्शन =महर्षि कणाद
- पूर्वमीमासा =महर्षि जैमिन
- उत्तरमीमांसा =महर्षि बादरायण
वेदांग
- वेदांग की संख्या ६ है।
- शिक्षा
- व्याकरण
- निरुक्त
- छंद
- ज्योतिष
- कल्प
अगत्य के वेदांग
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व्याकरण
अष्टाध्यायी व्याकरणग्रंथ =पाणिनि ऋषि
महाभाष्य व्याकरणग्रन्थ =पतंजलि ऋषि -
ज्योतिष
आर्यभट्ट =आर्यभटीयम,सूर्यसिद्धांत
वराहमिहिर =पंचसिद्धांतिका,बृहद्सहिता,लघुजातक -
कल्प
कल्पमे ४ पुरुसार्थ , त्रिऋण, और १६ संस्कार की बात की है।
उपवेद
- उपवेद की संख्या ४ है ।
- ऋग्वेद का उपवेद “आयुर्वेद” =रोगनिराकरण
- सामवेद का उपवेद “गंधर्ववेद “=संगीत
- यजुर्वेद का उपवेद “धनुर्वेद” =युध्दकाला
- अथर्वेद का उपवेद “शिल्पवेद” =स्थापना
पुराण
- पुराण यानि “आख्यान” जिसमे प्राचीन राजवंशो का वर्णन किया गया है।
- पुराण की संख्या १८ है।
- सर्वप्राचीन पुराण “मत्यपुराण” है ।
- मृत्यु के समय पढ़ने वाला पुराण “गरुड़पुराण“।
स्मृतिग्रन्थ
- स्मृतिग्रन्थ यानि प्राचीन भारतका “क़ानूनीग्रन्थ“।
- सर्वप्राचिन स्मृतिग्रन्थ “मनुस्मृति“।
महाकाव्यों
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रामायण
valmiki
रचना =वाल्मीकि ऋषि
समय =इ.स पूर्वे ४००
मूल श्लोक ६००० थे वर्तमान में श्लोक २४००० है ।
रामायण को अंतिम स्वरुप गुप्तयुग में दिया गया।
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महाभारत

ved vyas
रचना =वेद व्यास(कृष्ण द्वैपायन)
जयसहिता ८८०० श्लोक,भारतसहिता २४००० श्लोक ,महाभारत १ लाख श्लोक
महाभारत को १८ पर्व में बेचा गया है। जिसमे ६ पर्वे भीष्मपर्व है जहा भगवद्गीता का वर्णन है।
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वैदिक नदिया
- रावी वैदिक नाम “पुरुषणि“
- जेलम वैदिक नाम “वितस्ता“
- चिनाब वैदिक नाम = अस्किणी
- सतलज वैदक नाम =शतरुद्री
- बियास वैदिक नाम =बिपासा
- सिंधु वैदिक नाम =हिरण्यानी
- सरस्वती वैदिक नाम =सरावती