Gupta empire में राजकीय एकता,सलामती,समृद्धि और संस्कृति में प्रगति हुए है।इशलिये विद्वानों गुप्तयुग को “प्राचीन भारतका सुवर्ण युग” कहते है ।
Gupta empire
- राजधानी =पाटलिपुत्र
- राजचिह्न =गरुड़
- राजभाषा =संस्कृत
- धर्म =ब्रामण धर्म
श्रीगुप्त
- गुप्त वंश का स्थापक।
- श्रीगुप्त शुरुआत में “कुषाण” का सामंत था।
- श्रीगुप्त का समय चीनी यात्री “इत्सिंग” के वर्णन अनुसार इ.स २४० से इ.स २८० तक माना जाता है।
- श्रीगुप्त बाद गद्दी पर उनका पुत्र “Ghatotkacha” आता है।
चन्द्रगुप्त प्रथम
- समय था इ.स ३२० से इ.स ३३५।
- वो मगध में अपनी सत्ता स्थापने के बाद लिच्छवि क्षत्रिय कन्या “कुमारदेवी” के साथ लग्न करके पर्वीय सिमा मजबूत करता है।
- वह इ.स ३१९-३२० में गुप्त सवंत की शुरुआत करता है।
- सुवर्ण सिक्का को सबसे पहले चलन ने लेन वाला शासक।
समुद्रगुप्त
- समय इ.स ३३५ से इ.स ३७५
- समुद्रगुप्त का इतिहास अलहाबाद के “Prayag Prashasti” अभिलेख से मिला है। जिसकी रचना समुद्रगुप्त के दरबारी कवी “हरिसेन” ने की है।
- समुद्रगुप्त को “कविराज“,”लिच्छवि दोहित्र” और विस्टन स्मिथ ने उनको “भारतीय नेलोपलियन” की उपाधि दी है ।
- उनके समय के सिक्के में वो “पलंग पर बैठ कर विणा बजते” बताया गया है ।
- उनके दरबार में महाकवि हरिसेन ,बौद्ध साधु वसुमित्र और महादण्डनायक तिलभद्र का समावेश होता है।
- “प्रयाग प्रशस्ति” अभिलेख के अनुसार उन्होंने उत्तर भारत में ९ और दक्षिण भारत में १२ राजको हराया।
रामगुप्त
- समुद्रगुप्त का बड़ा बेटा जो समुद्रगुप्त के बाद गद्दी पर आता है।
- समय इ.स ३७५ से इ.स ३८०।
- एक कमजोर शासक था।
- पत्नी का नाम था “ध्रुवस्वामिनी देवी“।
- शक राजवी “रुद्रदामा ३” रामगुप्त पर आक्रमण करता है जिसमे रामगुप्त की पराजित होती है ।और रुद्रदामा रामगुप्त को जान से न मारने के बदले मे उनकी पत्नी “ध्रुवस्वामिनी देवी” की मांग करता है और यह कायर राजवी अपनी पत्नी देने को राजी हो जाता है।
- लेकिन रामगुप्त का छोटा भाई “चन्द्रगुप्त द्वितीय” शक राजवी रुद्रदामा ३ की हत्या करके अपनी भाभी को मुक्त करते है।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय अपने भाई रामगुप्त की कायरता के कारन हत्या करते है और अपनी भाभी “ध्रुवस्वामिनी” से लग्न भी करते है
चन्द्रगुप्त द्वितीय
- समय इ.स ३८० से इ.स ४१४
- बचपन का नाम =देवराज
- अंतिम शक राजवी “रुद्रदामा ३” को मारके “विक्रमादित्य” का बिरुद्ध प्राप्त करता है। उसके उपरांत उन्होंने “शकारी” और “साहसांक” जैसी उपमा प्राप्त की है।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने नागकन्या “कुबेरनागा” के साथ लग्न किया था। जिससे उत्पन पुत्री “प्रभावती” का लग्न वाकटक वंश के राजा रुद्रसेन ३ के साथ करवाया।
- रामगुप्त से हुए गुप्त वंश की बदनामी के कारन पाटनगर को पाटलिपुत्र के ख़सेडकर उज्जैन करते है।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने दिल्ली मे महारोली लोहस्तम्भ का निर्माण किया।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के समयमे चीनी यात्री “फाहियान” भारत आये जिसने “फोक्वॉकि” ग्रन्थ का निर्माण किया।इस ग्रन्थ में मध्य भारत का वर्णन ,ब्रामण का वर्णन और चांडाल जाती का वर्णन किया गया है।
कुमारगुप्त
- समय इ.स ४१५ से इ.स ४५५
- चन्द्रगुप्त द्वितीय और ध्रुवस्वामिनी देवी का पुत्र है।
- “महेन्द्रादित्य” का उपनाम मिला है।
- उन्होंने मध्यभारत में चांदी के सिक्के और उस सिक्के पर मोर और कार्तिकेय की छाप देखने मिलती है।
- कुमारगुप्त का वर्णन मध्यप्रदेश के “मंदसोर शिलालेख” में लिखा है।
- कुमारगुप्त ने बिहार मे नालंदा विध्यापीठ की स्थापना की जिसे इस १२०२-०३ में तिर्की शासक “महमद बिन बख्तियार खिलजी” द्रारा नाश की जाती है।
स्कंदगुप्त
- गुप्त वंश का अंतिम शक्तिसाली शासक।
- समय इ.स ४५५ से इ.स ४६७
- स्कंदगुप्त का वर्णन जूनागढ़ के “भीतरी अभिलेख” में किया गया है ।
- स्कंदगुप्त के समयमे वायव्य सहरद पर हुणो का आक्रमण होता है जैसे स्कंदगुप्त भगा देता है ।
स्कंदगुप्त के बाद के कई कमजोर शासक राज करते है जिसमे अंतिम शासक “विष्णुगुप्त” होता है।
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